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नेताजी – जिन्दा या मुर्दा १. अन्तिम सात साल

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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CONFUSION, MYSTRY AND STRUGLE IS THE WAY OF NETAJI – मेजर सत्यगुप्त

तईपेई की विमान दुर्घटना में नेताजी को मृत न मानना यदि राजनीति है तो बिना किसी ठोस प्रमाण के उन्हें मृत घोषित कर देना भी राजनीती है |

१८ अगस्त १९४५ को न तो नेताजी ताइपेई गए थे, न ही उस दिन वहा कोई विमान दुर्घटना हुई थी | नेताजी १७ अगस्त १९४५ को साइगोन (वियतनाम ) में भूमिगत हो गए थे एवं कुछ समय बाद वे रूस पहुन्च गए थे | उपर्युक्त बातो पर प्रकाश डालने के पहले आइये, उन बातो से अवगत हो जाये जो नेताजी के जीवन में दुर्घटना के 7 साल के भीतर घटे थे |

फरवरी १९३८ – नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष बने |
२९ दिसम्बर १९४० – जेल में नेताजी ने आमरण अनशन एवं शहीद होने की घोषणा कर दी तथा बंगाल के गवर्नर को पत्र लिखा – अन्याय एवं अनैतिकता से समझौता करके अपने अस्तित्व की भिक्षा मांगना मेरे सिद्यांत के विरुद्य है | सिद्यान्तो को बेचकर अपने जीवन को खरीदने की अपेक्षा मैं जीवन को ठुकरा देना अच्छा समझता हूँ | शासन अपनी पाशविक के बल पर मुझे जेल में बंद करना चाहती है, इसके उत्तर में मेरा कहना है – या तो मुझे मुक्त करो अन्यथा मैं जीवित रहने से इंकार कर दूंगा | इससे अधिक संतोष की और क्या बात हो सकती है की कोई ब्यक्ति सिद्यान्तो के लिए जिया और सिद्यान्तो के लिए मरा |
५ जनवरी १९४० – जेल से रिहा | cont..d.k. shrivastava ९४३१०००४८६ १९.६.१०

जेल से रिहा होने के बाद इन्होने एकांतवास बंद कमरे में ले लिया | देशवासियों में हल्ला हुवा – सुभास चन्द्र बोस संत हो गए | किन्तु उन्हें क्या मालूम था कि बंद कमरे में आने वाले समय का कैसा ताना-बना बुना जा रहा था | इस एकांतवास में नेताजी ने अपना दाढ़ी खूब बढ़ा लिया |

१६ जनवरी १९४१ – रात के १:३० बजे मौलवी के वेश में घर से निकल गए और अपने एक साथी भगतराम के साथ ३१ जनवरी १९४१ को काबुल पहुंचे | इधर योजनानुसार २६ जनवरी १९४१ को परिजनों ने नेताजी को लापता घोषित कर दिया | उधर नेताजी एक जर्मन मंत्री पिल्गर के सहयोग से मास्को से होते हुवे वायुयान द्वारा ३ अप्रैल १९४१ को बर्लिन पहुंचे | बर्लिन में नेताजी ने जर्मन सर्कार की सहायता से ‘वर्किंग ग्रुप इंडिया’ की स्थापना की जो ‘ विशेष भारत विभाग’ में शीघ्र ही परिणत हो गया | जर्मनी में ही इन्होने ३७०० भारतीय युध्य्बंदियो को मिलाकर दिसम्बर १९४१ में ‘आज़ाद हिंद फौज’ की स्थापना की |

२२ मई १९४२ – नेताजी हिटलर से मिले | हिटलर ने अपने किताब ‘मैन्कैम्फ़’ में भारत पर कुछ आपत्तिजनक बातें लिखी थी | नेताजी ने निर्भीक स्वर में इसपर विरोध जताई तो हिटलर ने खेद प्रकट किया और अगले संस्करण में अपनी वर्णित भारतीय दृष्टीकोण को बदल देने का बचन दिया |

इधर भारत में ९ अगस्त १९४२ को ‘बम्बई कांग्रेस अधिवेशन’ में. गाँधी जी द्वारा ‘भारत छोडो आन्दोलन’ शुरू हूवा, इस आन्दोलन का नेहरु जी ने पूरजोर समर्थन किया | ध्यान देने वाली बात है कि ये वही नेहरु जी थे, जिन्होंने. १९४० में कहा था – ऐसे समय में, जबकि ब्रिटेन जीवन एवं मरण के संघर्ष में घिरा है, विश्व-युध्य छिड़ा है, आन्दोलन छेड़ना भारत के लिए अप्रतिष्ठाजनक होगा | उल्लेखनीय है कि, इस समय नेताजी नागरिक अवज्ञा आन्दोलन एवं भारत छोडो आन्दोलन चलाना चाहते थें, कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे, किन्तु नेहरु जी व् पिठ्ठू नेताओ के बिरोध के कारण नहीं चलाये तथा कांग्रेस से अलग हो गए एवं ‘फॉरवर्ड ब्लाक ‘ की स्थापना की |

क्रमश: २४.६.१०

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