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नग्में – ५. हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था,

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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“हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था,
मेरी हड्डी वहाँ टूटी, जहाँ हॉस्पिटल बन्द था |
मुझे जिस एम्बुलेन्स में डाला, उसका पेट्रोल ख़त्म था,
मुझे रिक्शे में इसलिए बैठाया, क्योंकि उसका किराया कम था |
मुझे डॉक्टरों ने उठाया, नर्सों में कहाँ दम था,
मुझे जिस बेड पर लेटाया, उसके नीचे बम था |
मुझे तो बम से उड़ाया, गोली में कहाँ दम था
और मुझे सड़क में दफनाया, क्योंकि कब्रिस्तान में फंक्शन था

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