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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – 3. जहाँ परमात्मा का अस्तित्व है वहां नरक हो ही नहीं सकता

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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अब मैंने जबाब पाना शुरू किया, सोचा….गीता सही है, बिज्ञान भी सही है; आत्मा सचमूच अमर है, ये जन्म नहीं लेती | फिर जीवो की संख्या बढ़ी क्यों…?

गणित में एक टर्म आता है – ‘अनंत’ अर्थात वह बड़ी से बड़ी संख्या, जिससे बड़ी संख्या हो ही नहीं सकती | अनंत में हम कुछ भी जोड़े, योगफल अनंत हो होता है | अनंत में हम कुछ भी घटाए, फल अनंत ही होगा | …….तो आत्माओ की संख्या अनंत है | जीवो की संख्या कितना भी बढे या घटे, आत्माए अनंत ही रहेगी | कहाँ बढ़ी वो या कहाँ घटी वो !

सोचा, जबाब मिला | पुनः सोचा – विल्कुल ठीक है; जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है | सारा कुछ पूर्व निश्चित है; चाहे वो पाप हो या पुन्य | गलत गीता नहीं, गलत ये साधू-संत हैं | गलत वे है जिन्होंने स्वर्ग-नरक की परिकल्पना की है | गीता तो कहती है – सारी आत्माये परमात्मा का अंश है | अंततः परमात्मा में ही विलीन होती है…स्वर्ग या नरक नहीं जाती | …क्योकि जहाँ परमात्मा का अस्तित्व है वहां नरक हो ही नहीं सकता और परमात्मा सर्वत्र है | अगर नरक है तो परमात्मा नहीं है; और अगर परमात्मा है तो नरक को विदा करो | क्योकि नरक डर है और जहाँ डर है वहां प्रेम नहीं…और परमात्मा प्रेम का प्रतिक है |

cont…d.k.shrivastava 9431000486 24.6.10

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