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अब मै आता हूँ ‘ भी सिधांत’ पर….पुंडलिक अपने माँ-बाप की सेवा कर रहे थे | इनकी सेवा से प्रसन्न होकर पांडुरंग उनकी भेंट के लिए दौड़े आये | किन्तु पुंडलिक सोचे – क्या परमात्मा जिस रूप को धारण कर के खड़े है, क्या वह इतना ही है ? क्या यह रूप दिखाई देने के पहले सृष्टी प्रेतवत थी ? वह बोले—भगवन, आप स्वयं मुझे दर्शन देने के लिए आये है, यह मै जानता हूँ, पर मै ‘भी सिधांत’ मानने वाला हूँ | आप ही अकेले भगवान है, ऐसा मै नहीं मानता | मेरे लिए तो आप भी भगवान है और ये माता पिता भी | इनकी सेवा में लगे रहने के कारण मैं आप पर ध्यान नहीं दे सकता, अतः आप क्षमा कीजिये | इतना कहकर वे भगवन के लिए एक ईंट सरका दी और सेवाकार्य में निमग्न हूँ गए | इसी का नाम है ‘ भी सिधांत ‘ |
यह दो दिशाओ में कार्य करती है | जैसा जिसका प्रश्न , वैसा ही उसका उत्तर | मोक्ष प्राप्ति के लिए घर छोड़ने की जरुरत है यह भी सत्य है जैसे की शुक ने छोड़ा, शंकराचार्य ने छोड़ा; और घर छोड़ने की जरुरत नहीं है, यह भी सत्य है, जैसे जनक ने नहीं छोड़ा | किन्तु यह मोक्ष प्राप्ति भागीरथी है | कर्म रूपी नोट पर भावना की मोहर लगानी होती है |
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