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समाजशास्त्री कहते हैं की मनुष्य सीधा खड़ा हो गया इसलिए परिवार का जन्म हुआ, सभ्यता और संस्कृति का जन्म हुआ | आप सोच भी नहीं सकते कि सीधे खड़े होने से परिवार के जन्म का क्या सम्बन्ध है ? समाजशास्त्री कहते है- मनुष्य सीधा खड़ा हुआ इसलिए प्रेम पैदा हुआ, नहीं तो प्रेम कभी पैदा ही नहीं होता | अब आप सोच भी नहीं सकते कि सीधे खड़े होने से प्रेम का क्या लेना देना ? लेकिन हुआ….जरा आप ध्यान दे, जब पशु सम्भोग करते हैं तो उनके चेहरे आमने सामने नहीं होते, क्योंकि वे सम्भोग पीछे से करते है | मनुष्य जब सम्भोग करता है तो चेहरे आमने सामने होते हैं क्योंकि वह खड़ा हो गया | पीछे का सम्भोग गिर गया | सम्भोग ने सामने का रुख ले लिया और जब हम किसी के चेहरे को देखते है तभी व्यक्तित्व का ख्याल पैदा होता है | जब एक पुरुष एक स्त्री के सामने से सम्भोग में उतरता है तो तत्काल ही उसके चेहरे से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है | सिर्फ चेहरा….! बड़े मजे की बात है कि अगर सबकी गर्दन काट दी जाये तो शरीरों को पहचानना कठिन हो जायेगा कि किसका है ? लेकिन चेहरा पहचानी जा सकेगी क्योंकि व्यक्तित्व चेहरे पर ही है | चेहरा सम्भोग के समय आमने सामने पड़ा इसलिए कामवासना धीरे धीरे प्रेम में परिवर्तित होने लगी और इसी आधार पर व्यक्तिगत सम्बन्ध निर्मित हुए एवं परिवार खड़ा होना शूरु हो गया | धीरे धीरे शरीर गौण हो गया और चेहरा महत्वपूर्ण | पशुओ के लिए चेहरा कोई महत्त्वपूर्ण नहीं, शरीर ही उनके लिए महत्वपूर्ण है | सोचिये आप, इतनी छोटी सी बात; सिर्फ खड़ा हो जाना इतनी महत्वपूर्ण हो सकती है…!
‘छोटी सी बात’ इसलिए कि खड़ा होना सिर्फ एक क्रिया है; कालांतर में प्राप्त साधना का एक सरल रूप किन्तु यह क्रिया जिसके द्वारा है वह इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है |
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