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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – १७. तामसी, राजसी और सात्विक भोजन : भोजन के बाद नींद क्यों मालूम पड़ती है ?

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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कोई भी काम तभी होता है जब उसे करने की क्षमता होती है और यह कार्य करने की क्षमता ही उर्जा कहलाती है | मनुष्य को उर्जा मिलती है भोजन से; तो भोजन बड़ी बात है | इसी से हमारी सारी चिझे निर्मित होती है – शरीर, चेतना, बुद्धि | भोजन भी कई तरह का होता है जैसे तामसी भोजन, राजसी भोजन और सात्विक भोजन |

मै सात्विक भोजन उसे कहता हूँ जिससे एडिक्सन पैदा न हो | ऐसा भोजन जो शरीर को उर्जा प्रदान करता हो, नशा न देता हो | इस अंतर को ठीक से समझ लेना चाहिए | अगर शरीर के भीतर प्रवेश करना है तो शरीर का आमूल बदलना होगा |

कैसा भोजन आपको प्रिय है ? क्योंकि जो भी आपको प्रिय है वह अकारण प्रिय नहीं हो सकता | आप जो भोजन करते हैं, वह सूचना देता है कि आप कौन हैं ! आप कैसे उठते है ? कैसे बैठते है ? कैसे चलते है ? कैसे सोते है ? आप कैसा व्यवहार करते है ? इन सबसे आपके सम्बन्ध में संकेत मिलते रहते हैं |

राजसी गुण वाला व्यक्ति ऐसा भोजन पसंद करेगा कि जीवन में उत्तेजना आये, गति पैदा हो, दौड़ पैदा हो,
धक्के लगे | अतः वह कडवा, खट्टा, लवणयुक्त, अति गरम उत्तेजक आहार लेगा |

जो तामसी गुण वाला व्यक्ति है, वह ऐसा भोजन करेगा जिससे नींद आये, आलस्य आये, कोई उत्तेजना न पैदा हो, केवल बोझ पैदा हो और वह सो जाये; तो वह बासी, जूठा, ठंडा, अधपका, गंधयुक्त आहार लेगा | तन्द्रा के लिए बासी भोजन बहुत उपयोगी है क्योंकि भोजन जितना बासी और ठंडा होगा उतना ही पचने में देर लगेगा | क्योंकि पचने के लिए उसे अग्नि चाहिए | अगर भोजन गरम हो तो भोजन की गर्मी और पेट की गर्मी मिलकर उसे जल्दी पचा देती है | इसलिए पेट की अग्नि को हम ‘जठराग्नि’ कहते है और इसीलिए कहा जाता है की गर्म भोजन करो क्योंकि भोजन अगर ठंडा हो तो पेट की अकेली गर्मी के आधार पर ही उसका पाचन होता है, तो जो भोजन छः घंटे में पचना होता है वह बारह घंटे में पचेगा और पचने में जितनी देर लगती है उतनी ही ज्यादा देर तक नींद आएगी क्योंकि जबतक भोजन न पच जाये तब तक मस्तिष्क को उर्जा नहीं मिलती क्योंकि मस्तिष्क जो है वह लक्जरी है | अतः सारी उर्जा, सारी शक्ति पहले भोजन को पचाने में लगती है और यही कारण है कि भोजन के बाद नींद मालूम पड़ती है क्योंकि मस्तिष्क को जितनी शक्ति मिलनी चाहिए वह नहीं मिलती अतः मस्तिष्क सो जाती है |

तो तामसी भोजन के कारण तामसी व्यक्ति के मस्तिष्क को कभी भी उर्जा नहीं मिल पाती इसलिए तामसी व्यक्ति बुद्धिहीन होता है | वह शरीर के तल पर ही जीता है | उसमे नाममात्र की बुद्धि होती है | बस, इतना ही की वह अपने लिए भोजन की व्यवस्था कर सके | उसके लिए कैसी आत्मा और कैसा परमात्मा !

और राजसी व्यक्ति, उसे जीवन भर दौड़ना है, धन पाना है, पद पाना है, नेता बनना है, सिकंदर बनना है | तामसी व्यक्ति गहरी नींद सोयेगा तो राजसी व्यक्ति सोयेगा भी तो करवटे बदलता रहेगा | हाथ पैर इधर-उधर पटकता रहेगा |

तो जैसा मै बतला चूका हूँ कि तमस के लिए शरीर हो सबकुछ है, मन और आत्मा का कोई महत्त्व नहीं उसके लिए; राजस के लिए मन ही सब कुछ है, मन का सिकंदर होता है यह, मन के लिए तन और आत्मा भी बेच सकता है यह; लेकिन सात्विक, यह इन दोनों से भिन्न है | यह संतुलित है | यह आत्मा को महत्त्व देता है | यह प्रकृति के अनुसार जीता है और यही कारण है कि इसकी आयु स्वभावतः अधिक होती है | बुद्धि शुद्ध, तीक्ष्ण, स्वच्छ. निर्मल होती है क्योंकि वह शुध्ह सात्विक भोजन करता है |

तामसी भोजन आलस्य बढ़ाता है, राजसी भोजन क्रोध बढ़ाता है और सात्विक भोजन प्रेम बढ़ाता है | शरीर भोजन से हो बना है, इसलिए बहुत कुछ भोजन पर ही निर्भर है | तामसी प्रेम नहीं कर सकता, वह प्रेम की मांग करता है | उसकी शिकायत है कि उससे कोई प्रेम नहीं करता | सत्व प्रेम देता है और राजस को फुर्सत ही नहीं प्रेम करने की |

सात्विक व्यक्ति स्वाद के कारण भोजन नहीं करता यद्यपि वह बहुत स्वाद लेता है और ऐसा स्वाद कि वैसा और ले ही नहीं सकता…तो सात्विक व्यक्ति परम स्वाद को उपलब्ध होता है | किन्तु अगर आप इसके भोजन को तामसी व्यक्ति को दे तो वह कहेगा – क्या है यह घास-पात ? इसमें तो कुछ भी नहीं है | यह भी कोई भोजन है | अगर इसी भोजन को राजसी व्यक्ति को दे तो वह कहेगा – कैसा है यह भोजन ? न स्वाद न कुछ, न मिर्च न मशाला | ध्यान रखिये, जो लोग मिर्च-मसाले पर जीते हैं, वे ये न समझे की वे स्वाद ले रहे हैं | मिर्च मसाले की आवश्यकता ही इसलिए है कि उनका स्वाद मर गया है | उनकी जीभ इतनी मुर्दा हो गई है कि जब तक वे उस पर जहर न रखे, तब तक उन्हें पता ही नहीं चलता | मगर जिनकी जीभ जीवित है उन्हें मिर्च-मसाले की आवश्यकता नहीं | वे साधारण फलों से, सब्जियों से इतने अनूठे स्वाद को ग्रहण कर लेंगे कि कोई सोच भी नहीं सकता |

कहने का तात्पर्य यह कि सत्व को उपलब्ध व्यक्ति परम संवेदनशील होतें है | इसलिए मै आपसे कहता हूँ कि बुद्ध पुरुष जितनी आयु प्राप्त करते है उतनी आपको प्राप्त नहीं होती | हम तो जीने का बहाना करते है जबकि सत्व पुरुष प्रगाढ़ता से जीतें हैं | फूल उन्हें अधिक गंध देते हैं, हवा उन्हें अधिक शीतलता देती है, उन्हें सारा जगत सुन्दर लगता है | वे सत्यम शिवम् और सुन्दरम को उपलब्ध हो जाते हैं |

cont…Er. Dhiraj kumar shrivastava 9431000486
22.7.10

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