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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – १९. प्राणमय शरीर : आपने सुना होगा – फलां योगी अन्न ही नहीं खाते

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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तो अब तक मैंने योगतंत्र का पहला तल बताया जो भोजन पर आधारित है | शरीर की दूसरी पर्त है – प्राणमय कोष | यह प्राणमय कोष या एक एनर्जी बौडी है | एक फूल में और एक पत्थर में जो अंतर है वही अंतर पहली और दूसरी पर्त में है | पत्थर के पास शरीर है किन्तु प्राण नहीं है, इसलिए वह रात में भी पत्थर है और दिन में भी पत्थर है | किन्तु फूल के पास शरीर भी है और प्राण भी, अतः यह रात में कुछ और होता है, दिन में कुछ और | सूरज निकलता है तो फूल अपने आप खिल जाते हैं | …तो सूरज से जो उर्जा मिलती है वह उसके प्राणमय कोष को मिलती है और इस प्राणमय शरीर का पोषण प्राणाहार से होता है, इसे अन्नाहार की आवश्यकता नहीं |

आपने सुना होगा – फलां योगी अन्न ही नहीं खाते सिर्फ हवा खाकर जिन्दा है | यह कोई आश्चर्य की बात नहीं, ऐसा इसलिए संभव होता है कि वे प्राणाहार की कला की जानते है | वे प्राणाहार पर आश्रित है | आप सोचेंगे – यह कैसे संभव है |

एक विशेष प्रकार की योग कला है जिससे उर्जा को ये पदार्थ के रूप में ग्रहण करते हैं | वैज्ञानिक पदार्थ को उर्जा में बदलने से परिचित है किन्तु उर्जा को पदार्थ में बदलने में अभी असमर्थ है | लेकिन आइन्स्टीन ने साफ कहा था कि – ” मैटर एंड एनर्जी आर नॉट टू थिंग्स; मैटर इज जस्ट एनर्जी, एनर्जी इज जस्ट मैटर….टू स्टेटस ऑफ़ वन थिंग | विज्ञान का सबसे बड़ा फार्मूला यही है कि शक्ति और पदार्थ दो चिझे नहीं है | दोनों एक ही चीझ की दो अवस्थाये है | पदार्थ शक्ति बन सकता है और शक्ति पदार्थ बन सकता है |

तो प्राणमय शरीर को शुद्ध बनाने के लिए शुद्ध प्राणवायु की आवश्यकता होती है | अतः योग के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में गहरी श्वास लेने का अभ्यास करना चाहिए | श्वास जितनी गहरी होगी उतने ही हम प्राणवान होंगे और फलस्वरूप उतनी ही हमारी बुद्धि, हमारी मेधा, हमारी मानसिक शक्ति, हमारी क्षमता बढ़ेगी | आपने शायद गौर किया होगा कि सिद्ध पुरुष के आँखों में एक विशेष चमक एक विशेष तेज होती है | वास्तव में आँख ही हमारे प्राणमय शरीर की झलक होती है | यही सुचना देती है कि हमारे भीतर क्या हो रहा है और क्या घट रहा है |

cont…Er. Dhiraj kumar Shrivastava, 9431000486
23.7.10

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