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तो जैसे भौतिक शरीर के लिए शुद्ध शाकाहारी भोजन है उसी प्रकार प्राणमय शरीर के लिए आवश्यक है शुद्ध प्राणवायु | अब प्राणवायु लेने का अथार्त श्वसन का भी अपना विज्ञान है | श्वास दो प्रकार की होती है – उथली और गहरी | उथली श्वास कभी न ले | इससे जीवन और आयु पर कुप्रभाव पड़ता है | बुद्धि, विवेक और मेधा – ये उन्नत नहीं हो पाती | अगर स्त्रियाँ बुद्धिमानी में पुरुषो से पिछड़ गयी तो उसका एक कारण यही है- उथली श्वास लेना | उथली श्वास का मतलब है पेट से न लेकर छाती से श्वास लेना | इसी प्रकार गहरी साँस का मतलन है पेट से श्वास लेना | पेट से श्वास लेने पर पेट ऊपर-निचे होता है जैसे बच्चे का श्वसन | जैसे एक योगी श्वास लेता है वैसे ही एक बच्चा भी लेता है | यही सम्यक श्वास है | लेकिन स्त्रियाँ प्रायः उथली श्वास लेती है | उनका पेट नहीं, वल्कि छाती ऊपर-नीचे होता है, अगर आप ध्यान दे तो इस पर अवश्य नजर जायेगा और यही कारण है की स्त्रियों की छाती शरीर के अनुपात में बड़ी होती है | यदि किसी पहलवान को अपनी छाती चौड़ी तथा बड़ी करनी होती है तो वह भी छाती से साँस लेता है, छाती पर जोड़ देता है और इसलिए दंड पेलता है ताकि छाती से श्वास ले सके | इसीलिए प्रायः पहलवान भी बुद्धिमान नहीं होते और हो ही नहीं सकते क्योंकि बुद्धि के विकास के लिए प्राणवायु का घना होना आवश्यक है और इसी कारण आप देखेंगे कि पहलवानों की छाती तो चौड़ी और बड़ी होती होती है किन्तु पेट सिकुड़ा होता है क्योंकि वे पेट पर जोड़ ही नहीं देते |
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