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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – २४. मनोमय शरीर : हम जैसा सोचेंगे , वैसा हो जायेंगे |

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – २४. मनोमय शरीर : हम जैसा सोचेंगे , वैसा हो जायेंगे |

yogshastr & Adhyatm (Spritualiy ) – Manomay sharir – It is upto us, we are thus or thus

हमने अब तक शरीर का दो तल देखा – पहला भौतिक शरीर, दूसरा प्राणमय शरीर | अब मै आता हूँ शरीर के तीसरे तल पर और वह है मनोमय शरीर |

जब भौतिक शरीर और प्राणमय शरीर निर्मल हो जाते हैं तब इसकी झलक मिलनी शुरू हो जाती है | मनोमय शरीर का निर्माण होता है विचार से | इसीलिए कहा गया है कि हम जैसा सोचेंगे , वैसा हो जायेंगे | मनुष्य जितना सुसंस्कृत, चिंतन-मननशील होता है उतना ही उसका मनोमय शरीर स्वच्छ होता है | किन्तु यह शरीर हमें दिखाई नहीं देता | इसलिए हम मनोमय शरीर के भीतर कुछ भी डालते चले जाते है | हम अख़बार पढ़ते है, पोस्टर देखते है, विज्ञापन पढ़ते है; हम ख्याल भी नहीं करते कि उन सबके जो शब्द है वे हमारे मनोमय शरीर के भीतर जा रहे है | हमारा पूरा जीवन उपद्रवो से भरा है, क्यों ? इसलिए कि हम अपने मन के निर्माण में असावधान रहते है | हमें इसका बोध ही नहीं है कि हम जो पढ़ते है, जो सुनते है, जो सोचते-विचारते है, उन सबसे हमारा मनोमय शरीर निर्मित हो रहा है | अगर जाने-अनजाने बैठे ये विचार, एक बार हमारे मनोमय शरीर में चला गया तो निकालना कठिन हो जायेगा | उसे हम जितना भुलाना चाहेंगे उतना ही गहरा पैठता जायेगा क्योंकि भुलाने के लिए भी तो याद करना पड़ता है | किसी ने ठीक ही गाया है – तुझे भूलना जो चाहा, लेकिन भूला न पाया | जितना भूलाना चाहा तू उतना याद आया | ….</strong> कैसे भूल सकते है आप | आप भूला सकते ही नहीं क्योंकि भुलाने का याद कर कर के उसे आप और मजबूत किये चले जाते है |

तो निर्मल मनोमय शरीर के लिए आप वही सुने जो सुनना चाहिए, वही देखे जो देखना चाहिए, वही बोले जो बोलना चाहिए | गाँधी जी का ‘तीन बन्दर’ अगर समझ में आ जाये तो फिर इस तीसरे तल का शुद्धिकरण होना शुरू हो जायेगा |

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