Menu
blogid : 954 postid : 366

योगशास्त्र एवं आध्यात्म – २५. ‘विज्ञानमय शरीर’ एवं ‘आनंदमय शरीर’ : – आनंद के विपरीत हमारे पास कोई शब्द नहीं है

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
  • 157 Posts
  • 309 Comments

फिर शरीर का एक चौथा तल भी होता है जिसे ‘ विज्ञानमय शरीर’ कहते है | अन्नमय, प्राणमय और मनोमय शरीर के साथ आत्मा संयुक्त होकर बुद्धि के द्वारा जो कुछ ज्ञान प्राप्त करती है, उसके उस बुद्धिमय स्वरुप को ही ‘विज्ञानमय शरीर’ कहते है और इन चारो तलों के साथ बरगद के बीज में वृक्ष की तरह एक कोष के भीतर आत्मा होता है | यही कोष शरीर का अंतिम तल है जिसे ‘आनंदमय शरीर’ कहते है | इसे आत्मा का शरीर भी कहते है | इस पांचवे तल की विशेषता है कि यह शुद्धतम है | यह अशुद्ध हो ही नहीं सकता | इसलिए आनंद के विपरीत हमारे पास कोई शब्द नहीं है | सुख के विपरीत दुःख है | शांति के विपरीत अशांति है | प्रेम के विपरीत घृणा है | लेकिन आनंद के विपरीत हमारे पास कोई भी शब्द नहीं है | आनंद एक अकेला शब्द है | मै बात कर रहा था, तो एक भाई ने बोला – ‘निरानंद’ | ध्यान दे – ‘नीरानंद’ आनंद के अभाव का सूचक है, विपरीतार्थक नहीं | वास्तव में निरानंद का कोई अस्तित्व नहीं है | इसलिए यह जो पांचवा शरीर है ‘ आनंदमय शरीर’ सदैव शुद्ध ही होता है और यही कारण है कि प्रत्येक आदमी को लगता है कि आनंद मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है | यह मुझे मिलना ही चाहिए और यही कारण है कि हम सदैव आनंद की खोज में भटकते रहते है | अगर आपको इस बात का पूरा भरोसा हो जाये कि ईश्वर अथवा सत्य को प्राप्त कर आनंद विल्कुल न मिलेगा तो आप तुरंत ईश्वर या सत्य की खोज बंद कर देंगे | सोचेंगे ऐसी खोज से भला क्या लाभ ?

तो जरा सोचे, नीत्से कहता है – अगर आनंद ही जीवन का लक्ष्य है और असत्य में आनंद मिलता है तो फिर बुराई क्या है असत्य में ? अगर आनंद ही जीवन का लक्ष्य है और माया में ही आनंद मिलता है तो छोडो ब्रहम को | फिर ब्रह्म की खोज क्यों ?

वो इसलिए कि ‘योग’ कहता है – हमें असत्य से भी आनंद मिलता है सिर्फ इसलिए कि असत्य सत्य होने का धोखा देता है, नहीं तो नहीं मिलता | इसलिए कोई असत्यवादी होने का दावा नहीं करता | दावा सदा सत्यवादी होने का ही करता है |

तो यह जो आनंदमय शरीर है, इससे भी हमें मुक्त होना होगा | क्योंकि जबतक शरीर है तब तक हम वह नहीं है जो हम है, वल्कि हम ‘मै’ हैं |अतः हम जब क्रमशः अन्नमय शरीर, प्राणमय शरीर, मनोमय शरीर, एवं विज्ञानमय शरीर को निर्मल, पारदर्शी करते हुए इस पांचवे तल आनंदमय शरीर को निर्मल, पारदर्शी बना देते है तो आत्मा के ऊपर चढ़ा हुआ यह पांच शरीर का आवरण हट जाता है और हम उसे प्राप्त कर लेते है जो हम है |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh