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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – २८. सुख और दुःख : प्रेम विवाह जितना दुःख लाता है उतना आयोजित विवाह नहीं ला सकता

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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इस सम्बन्ध में हम आपको एक उदाहरण देते है, अगर किसी का विवाह माता पिता ने कर दिया तो बहुत सुख कि अपेक्षा नहीं हो सकती इसलिए दुःख भी अधिक फलित नहीं होता | प्रेम विवाह जितना दुःख लाता है उतना आयोजित विवाह नहीं ला सकता | पश्चिम के लोगो ने सोचा – प्रेम विवाह बहुत सुख देगा | उन्होंने एक प्रकार से ठीक ही सोचा था | लेकिन उन्हें दूसरी बात का पता नहीं था कि प्रेम विवाह बहुत बड़ा दुःख भी उत्पन्न करेगा, क्योंकि जितने बड़े सुख की अपेक्षा होगी तो जब उसका रुपान्तरण होगा तो उतना ही बड़ा दुःख उत्पन्न होगा | अनुपात हमेशा बराबर ही रहेगा |

हमारे देश के लोग होशियार थे एक दृष्टि में | उन्होंने एक दूसरा ही प्रयास किया | प्रयास यह किया कि सुख की अपेक्षा ही कम करे | आयोजित विवाह न अधिक सुख दे सकता है न अधिक दुःख | इसलिए यह चल सकता है और चल गया | प्रेम विवाह चल नहीं सकता, क्योंकि इतने बड़े सुख की आशा तो उतना ही दुःख मिलेगा, जब टूटेगा | जितना अधिक ऊंचाई जाइएगा उतना ही अधिक गहराई बढ़ेगी | समझे न, चाहा था शिखर और उपलब्ध होती है खाई |

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