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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – ३१. शरीर में होना एक बात है और शरीर हो जाना विल्कुल दूसरी बात |

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – ३१. शरीर में होना एक बात है और शरीर हो जाना विल्कुल दूसरी बात |

(To be in the body is one thing and to be the body is another thing. )

एक भाई ने कहा – जब सब कुछ त्यागना ही है तो ये शरीर क्यों पैदा होता है ?

आप जरा समझ ले, हमारी इन्द्रिया ही सारे सुख-दुःख का कारण है | शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध ये ही हमारे सुख-दुःख के कारण है | ये इन्द्रिया हमारे शरीर में हैं इसलिए शरीर है | किन्तु मै तो शरीर हूँ ही नहीं, मै शरीर में हूँ | शरीर में होना एक बात है और शरीर हो जाना विल्कुल दूसरी बात |

मै शरीर हूँ, यह क्यों पैदा हो जाता है – वही सुख-दुःख के कारण | लेकिन मै तो शरीर हूँ ही नहीं | जरा आप समझे—जब कोई हमें प्रेम करता है तो हम समझते है कि हम प्रेम करने योग्य है ही और अगर कोई हम पर क्रोध करता है तो हम समझते है कि बड़ा दुष्ट है वह | तब हम ऐसा नहीं समझते कि हम क्रोध करने के योग्य है ही | विभाजन धोखा है | या तो हम दोनों है या हम दोनों नहीं है | अगर हम दोनों है – प्रेम करने योग्य भी और घृणा करने योग्य भी तो इन दोनों में विरोधाभाष है क्योंकि प्रेम करने योग्य व्यक्ति घृणा करने योग्य हो ही नहीं सकता और अगर हम दोनों नहीं है – न घृणा करने योग्य न प्रेम करने योग्य, तब आखिर हम क्या है ? हम तो खाली हो गए ! इसलिए मै कहता हूँ – मै शरीर नहीं हूँ | मै कुछ और हूँ | इस ‘और’ को ही खोजना है |

cont…Er. Dhiraj kumar shrivastava 9431000486, 31.7.10

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