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लेकिन इस ‘और’ की खोज बड़ा कठिन है | क्योंकि हम जब भी पूछते है तो यही कि संसार में दुःख क्यों है ? हम यह कभी नहीं पूछते कि संसार में सुख क्यों है ? लोग यही पूछते है कि आदमी मरता क्यों है ? लेकिन कोई यह नहीं पूछता कि यह जीवन क्यों ? ऐसा लगता है कि जीवन तो होना ही चाहिए | जीवन तो हमारे भीतर है और मृत्यु कही बाहर से आती है | मानव स्वभाव ही है कि जो प्रीतिकर है, सुखद है वह उससे है और जो दुखद है वह किसी और से जुड़ा है | इसलिए धर्मो को ईश्वर के साथ शैतान की भी कल्पना करनी पड़ी | क्योंकि ईश्वर तो कृपालु है यह समझ में आता है लेकिन एक अबोध बालक जो मरा हुवा ही पैदा हो गया, कोई पाप ही नहीं कर सका तो फिर ईश्वर ने पैदा ही क्यों किया | यह नासमझी ईश्वर ने क्यों की | कम से कम ईश्वर को तो पता होना चाहिए कि जब बालक मरा हुआ ही पैदा होगा तो पैदा करने का उपद्रव ही क्यों ?
तो धर्म ने एक दूसरा व्यक्तित्व खोजा – शैतान अर्थात बुरे का स्वामी | समस्त बुरे कार्य वही करता है | ईश्वर को तो पूर्ण रूपेण अच्छा बनाकर रखना है | अतः हम उनमे किसी भी तरह की बुराई नहीं देख सकते | तो अच्छा काम हम अपने से जोड़ लेते है और बुराई का काम हमसे शैतान करवा रहा है | शैतान सवार हो गया है सर पर, ऐसा सोचते है हम |
लेकिन यह संसार दोनों का जोड़ है | या तो दोनों को अस्वीकार कर दे या दोनों को स्वीकार | दोनों अवस्थाओ में मुक्ति है | लेकिन यह जो मुक्ति है यह कठिन मार्ग है, भारी तपश्चर्या; क्योंकि कुछ लोग तो यह भी नहीं मानते कि आत्मा होती भी है या नहीं !
cont…Er. Dhiraj kumar shrivastava 9431000486, 31.7.10
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