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क्या वास्तव में आत्मा का अस्तित्व है ?
विज्ञान कहता है – कोशिकाओ में निरंतर परिवर्तन होते है और नए अणु पुराने अणु का स्थान बराबर लेते रहते है – ऐसा जीव विज्ञानी कहते हैं | तो जब शरीर का हर चीझ हमेशा बदलता रहता है तो हमारी स्मृति कैसे अक्षुष्ण बनी रहती है | इसके उत्तर में प्रसिद्ध खगोल वेत्ता डॉक्टर स्ट्रोम्वर्ग ने कहा था – ऐसा लगता है कि अणुओ के प्रभाव से रहित कोई शक्ति क्षेत्र (भारतीय आध्यात्म इसी शक्ति को आत्मा कहता है ) अवश्य है जो न कभी बदलता हो और न कभी नष्ट होता हो | इस क्षेत्र में जिज्ञासा रखने वालो ने डॉक्टर स्ट्रोम्वर्ग से पूछा था – आपके विचार से मन-मस्तिष्क में जन्म लेने वाले विचारो का मूल स्त्रोत क्या है ? आखिर कोई विचार हमारे मस्तिष्क में एकाएक कैसे और कहाँ से उत्पन्न हो जाते है | डॉक्टर स्ट्रोम्वर्ग का उत्तर वैज्ञानिक भाषा में होते हुवे भी परामनोवैज्ञानिको के समझ में आसानी से आ जाने वाला है | उनका उत्तर था – विचारो के मामले में हमारा मन दुरबोध जैसी विचार संरचना से प्राप्त प्रभाव का रिसीवर मात्र है | जैसे किसी स्टेशन से कुछ प्रसारित होता है और हमारे रेडिओ का रिसीवर उसे कैच कर लेता है, उसी तरह जिन विचारो को अन्तःप्रेरणा की संज्ञा दी जाती है, वे वास्तव में ब्रह्माण्ड की आत्मारूपी सर्वव्यापक मन (भारतीय आध्यात्म इसी को परमात्मा कहता है) से हमें प्राप्त होते हैं |
तो हमें किसी भी चीझ को जानने के लिए बहुत से पहलुओ का सहारा लेना होता है | विज्ञान सिर्फ एक पहलु है | लेकिन विज्ञान से प्रभावित लोग इस विश्वास की ओर झुकते हैं कि – जो विज्ञान में नहीं है, वह है ही नहीं | लेकिन जो अधुरा है, सदा अधुरा रहेगा | क्योंकि विज्ञान सदा निष्कर्ष निकलता है, उदेश्य नहीं | खगोल विद्या हमें तारो के विषय में बहुत कुछ बताती है लेकिन यह नहीं बताती कि इन तारो का उदेश्य क्या है ?
तो विज्ञान को किसी भी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए अभी काफी आगे तक जाना है | कहाँ तक, कह नहीं सकता |
cont…Er. Dhiraj kumar shrivastava 9431000486, 31.7.10
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