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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – ३५. ज्योतिष एवं चक्र : हमारा जीवन एक लम्बे इतिहास की लम्बी श्रृंखला सी है |

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – ३५. ज्योतिष एवं चक्र : हमारा जीवन एक लम्बे इतिहास की लम्बी श्रृंखला सी है |

Astrology and Chakr : Our life is a chain cycle of a long history.

मै भी आज के बुद्धिजीवी वर्ग की तरह ये जरुर मानता हूँ कि ज्योतिष एक अविकसित विज्ञान है, लेकिन साथ ही यह भी मानता हूँ कि यह किसी अत्यंत विकसित सभ्यता का विज्ञान रहा होगा | समय के काल में वह सभ्यता खो गई होगी और हमारे हाथ में ज्योतिष के अधूरे सूत्र ही रह गए | ‘अज्ञात’ को पकड़ने के लिए दो साधन है – एक वाह्य एवं दूसरा आंतर | ग्रह-नक्षत्र, राशी, कुंडली, रेखाए आदि वाह्य साधन है | आन्तर साधन है वे केंद्र, जिन्हें योगशास्त्र ‘चक्र’ कहता है | कहने की आवश्यकता नहीं कि दीर्घकाल से ज्योतिष के आचार्य वाह्य साधनों पर ही अटके हुए है, जिसके कारण ज्योतिष की गहराई खो गई और चक्रों पर किसी का ध्यान ही नहीं गया | चक्रों की संख्या सात है और ये ही विभिन्न शक्तियों के केंद्र है | इन्हें सप्तऋषियों से शक्तिया प्राप्त होती है | सप्तऋषि मंडल में सात तारे हैं और प्रत्येक तारे का सम्बन्ध एक चक्र से है | लेकिन सभी चक्र चैतन्य और क्रियाशील नहीं है | सात में केवल प्रथम तीन ही चैतन्य और क्रियाशील है और वह भी पूर्ण रूप से नहीं | ये तीन अवस्था में रहते है – जागृत, स्वप्न और सुसुप्त | इन्ही तीनो में हमारे अतीत की स्मृतियों के भंडार भरे हुए हैं | अगर इन तीनो को हम पूर्ण रूपेण चैतन्य कर सके बुद्ध की तरह तो हमारे सामने पिछले एक ही जन्म नहीं वल्कि सैकड़ो जन्म के अतीत का भंडार खुल सकता है | फिर हमारा जीवन एक लम्बे इतिहास की लम्बी श्रृंखला सी लगेगी | हमने किस जन्म में क्या क्या किया है और क्या क्या भोगा है, सब चलचित्र की तरह सामने आ जायेगा | विज्ञान इसी को ‘टाइम टेक’ कहता है और हमारा आध्यात्म कहता है – ‘जातीस्मरण ‘ |

जिस प्रकार तीन चक्रों में अतीत की अतुल सम्पदा भरी है उसी तरह चौथे चक्र में ‘भविष्य’ का भंडार भरा हुआ है | तीन के खुलने के बाद चौथा चक्र अपने आप खुल जाता है और तब हम अपने सुदूर भविष्य को उसी प्रकार देख सकते है जैसे कोई ऊँची मीनार पर चढ़ कर बहुत दूर तक का अवलोकन कर सकता है |

भविष्य अवलोकन में अंको का भी काफी महत्त्व है | १ से ९ तक की संख्या और शून्य; इसका भारी महत्त्व है | २७ और ३६ इसका भी बड़ा महत्त्व है | ज्योतिष शास्त्र कहता है कि नक्षत्र २७ हैं और तत्व ३६ हैं | २७ नक्षत्रो को १२ भागो में बिभक्त किया गया है , जिन्हें द्वादश राशी कहते है | प्रत्येक राशि कई नक्षत्रो का समूह है | सारे ग्रह-नक्षत्र से निरंतर अनंत प्रकार को अदृश्य किरणों का जाल पृथ्वी से बराबर टकराता रहता है | कोई बच्चा ‘जो उसके पिछले जन्मो का पूरा का पूरा रूप था’ वैसा रूप के नक्षत्र और घडी को चुनकर जब जन्म लेता है तो उसका सम्बन्ध उस तत्काल ग्रह-नक्षत्रो के स्थितियों से जुड़ जाता है और यह सम्बन्ध तब तक बना रहता है जब तक मृत्यु नहीं होती | प्रायः मृत्यु भी उसी नक्षत्र में होती है जिसमे उसका जन्म हुआ रहता है | नक्षत्र के चरण में अंतर भले ही हो सकता है | सबसे रहस्य की बात तो यह है की जब जब मनुष्य और उससे सम्बंधित नक्षत्रो के तालमेल में व्यवधान उत्पन्न होता है तब तब मनुष्य अस्वस्थ होता है |

राशियों का भी अपना एक स्वरुप होता है और वह है तांत्रिक स्वरुप | उदाहरण के लिए प्रथम राशी ‘मेष’ को ही लीजिये | मेष राशी संस्कृत में ‘मिष’ धातु से निकला है जिसका अर्थ होता है शेखी बघारना और किसी बस्तु पर जबरदस्ती अधिकार प्रकट करना; तो इस राशी से सम्बंधित व्यक्ति जन्म से ही प्रायः शक्तिशाली होते हैं |

तो मूल यह कि हम सभी कास्मिक पदार्थो से निर्मित है | यह वैज्ञानिक सत्य है | हमारी देह में रासायनिक एवं भौतिक पदार्थो का मिश्रण है | इसीलिए जितने भी सौरमंडल में ग्रह, नक्षत्र, पिंड हैं, उनकी कास्मिक शक्तिया प्रत्येक क्षण हमें प्रभावित करती रहती है | जिस व्यक्ति की जो राशी है और जो नक्षत्र होता है उसका कास्मिक प्रभाव हमारे जीवन में अवश्य पड़ता है | वह प्रभाव ही जीवन निर्मित करता है और वही मृत्यु भी | यह सुनिश्चित है |

निद्रावस्था में शरीर से अलग होकर जब आत्मा बाहर बिचरण करती है तो एक अदृश्य रुपहले तार से शरीर और आत्मा का सम्बन्ध बना रहता है और इस तार के टूटने को ही मृत्यु की संज्ञा दी जाती है |

cont…Er. D.K. Shrivastava (Astrologer Dhiraj kumar) 9431000486, 3.8.2010

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