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योगशास्त्र एवं आध्यात्म – ३६. तीसरा नेत्र : यदि यह केंद्र पूरी तरह से खुल जाये तो पदार्थ लीन हो जायेगा और अखंड विराट सत्ता प्रकट हो जाएगी |

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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अब मै शरीर के सबसे महत्वपुर्ण और मूल्यवान अंग के बारे में बताना चाहता हूँ | वह अंग है – नेत्र | महत्वपूर्ण होने का कारण यह है कि इसका सीधा सम्बन्ध अन्नमय शरीर, प्राणमय शरीर और मनोमय शरीर से है | जिस व्यक्ति का स्थूल शरीर स्वस्थ और नीरोग है उसके नेत्र चंचल, अस्थिर और धूमिल होते है | जिस व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर अर्थात प्राणमय शरीर स्वस्थ और उन्नत होता है उसके नेत्र स्थिर, तेजोमय और प्रखर होते हैं | इसी तरह जिस व्यक्ति का मनोमय शरीर स्वस्थ, विकसित एवं उन्नत होता है उसके नेत्र स्थिर, तेजोमय, प्रखर होने के अतिरिक्त सम्मोहन से भरे स्वप्नालु भी होते है | बार बार पलकों का गिरना कमजोर इच्छा शक्ति का सूचक है | नेत्रों की अपनी अलग भाषा है | जो लोग नेत्रों की भाषा पढ़ना जानते है वे किसी के भी नेत्र को देखकर उसके भावो को समझ सकते है और उसके विचारो को जान सकते है | नेत्र में १ करोड़ २० लाख ‘कोन’ और ७० लाख ‘रोड’ कोशिकाए होती है | इसके अतिरिक्त १० लाख ऑप्टिक नर्वस होती है | इन कोशिकाओ और तंतुओ का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क से होता है |

हम बहिर्जगत का दर्शन तो इन उपरी आँखों से कर लेते है पर अंतर्जगत में कैसे झांके |

तो उस झाकने वाले को लोकमानस ‘मन की आँखे’ कहता है और वही है भगवन शंकर का ‘तीसरा नेत्र’ और यही कुंडलिनी जागृत करने का केंद्र भी है | इसका स्थान दोनों भौहो के बीच में है |

हर रहस्य को और हर भेद को जान लेने के लिए व्याकुल आधुनिक विज्ञान इस रहस्य के तह में भी जा पहुंचा है और मस्तिष्क के बीच तिलक लगाने के स्थान की ठीक नीचे और दोनों मस्तिष्को के बीच की रेखा पर एक ग्रंथि मिली जिसे वैज्ञानिको ने ‘पीनियल ग्लैंड’ का नाम दिया है | यह ग्रंथि गिरगिट के माथे पर गोल उभार के रूप में देखी जा सकती है | यह पीनियल ग्रंथि सात रंगों के साथ साथ बैगनी के परे पराबैगनी किरणों को तथा लाल के परे आरक्त या इन्फ्रारेड को भी ग्रहण कर सकती है | इस ग्रंथि को फ्रेंच दार्शनिक रेने ने आत्मा का केंद्र ही कह दिया है | अमेरिकी वैज्ञानिक लर्नन ने सन १९५८ में इस ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन को ‘मेलाटोनिन’ नाम दिया जो मेलानिन नामक रंग द्रव्य का नियंत्रण करता है | मेलाटोनिन की मात्रा ही त्वचा और बालो के रंगभेद की जिम्मेदार है | लेकिन मेलाटोनिन का निर्माण एक और रसायन करता है जिसका नाम है – सेरोटोनिन | पीनियल ग्रंथि एक प्रकार से सेरोटोनिन का भंडार ही है और इसी से मस्तिष्क में बुद्धि का निर्माण होता है और विकास भी | खैर……

बाद में वैज्ञानिको को पता चला कि केला, अंजीर और गूलर में भी सेरोटोनिन पाया जाता है | बैज्ञानिको का कहना है कि संभव है भगवन बुद्ध को ‘बोध’ प्राप्त करने में बोधिवृक्ष के फलो से प्राप्त सेरोटोनिन का विशेष योग रहा हो | खैर, अभी सेरोटोनिन का इंजेक्सन लगा कर लोगो में बुद्धत्व उत्पन्न करने का काम तो शुरू नहीं हुआ है लेकिन यह देखा गया है कि ‘एल. एस. डी. जिसकी एक ग्राम के दस लाखवे हिस्से जितनी मामूली खुराक दिन में तारे दिखने के लिए काफी है, सीधे दिमाग में जाकर सेरोटोनिन मस्तिष्क की क्रियायो में बाधा डालती है और यही कारण है की L.S.D के नशे में डूबा आदमी अपने आसपास की चिझो को सही परिप्रेक्ष्य में नहीं देख पाता | इसका कारण यह है की L.S.D के अणुओ की बनावट सेरोटोनिन के अणुओ से बहुत मिलती है और जैसे ही सेरोटोनिन की जगह दिमाग में एल. एस. डी. के अणु ले लेते है, मस्तिष्क उन तमाम रंगों, ध्वनियो को ग्रहण करने लगता है जो शायद कोई तीन अरब वर्ष पहले उन आदि समुन्दरो में बिखरे हुवे थे, जब जीवन की इकाई प्रथम कोशिका की सृष्टि हुई थी | खैर…

वर्तमान में पीनियल ग्लैंड पर शोध और खोज जारी है | उसे किस सीमा तक सफलता मिलेगी यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन यह कहना अप्रासंगिक न होगा कि पीनियल ग्लैंड का सम्बन्ध तीसरा नेत्र से है और तीसरा नेत्र चेतन सत्ता का विषय है और विज्ञान केवल खंड सत्य को ही पकड़ पाता है, पूर्ण सत्य उसकी पहुँच के बाहर है क्योंकि कल के विज्ञान का अभाज्य अणु आज के विज्ञान में विभाजित है |

आज का विज्ञान इस बात को स्वीकार करता है कि हम लोग मस्तिष्क का बहुत थोडा हिस्सा ही काम में लाते है | मस्तिष्क का बड़ा हिस्सा निष्क्रिय है | वैज्ञानिको का कहना है कि उस बड़े हिस्से में क्या क्या छिपा है, यह बतलाना कठिन है | लेकिन पराविज्ञान कहता है कि ब्रह्माण्ड के तमाम गूढ़ रहस्य इसी बड़े हिस्से में छिपे हुवे हैं और तीसरा नेत्र का सम्बन्ध उसी अज्ञात और रहस्यमय बड़े भाग से है | अगर गहरे से विचार किया जाये तो मस्तिष्क के उस बड़े भाग का केंद्र है तीसरा नेत्र, जिसे सुपर सेन्स, अतीन्द्रिय -इन्द्रिय और छठी इन्द्रिय कहते है | योगी समाज का कहना है कि यदि वह केंद्र पूरी तरह से खुल जाये तो पदार्थ लीन हो जायेगा और अखंड विराट सत्ता प्रकट हो जाएगी | आकर खो जायेगा, निराकार प्रकट हो जायेगा | रूप मिट जायेगा, अरूप आ जायेगा | हमारा सम्बन्ध सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से स्थापित हो जायेगा |

cont…Er. D.K. Shrivastava (Astrologer Dhiraj kumar) 9431000486, 4.8.2010

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