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साधना का दूसरा चरण है एकत्र उर्जा को जगाना
आप उर्जा को उत्पन्न भी कर सकते है | काम केंद्र स्वयं उर्जा उत्पन्न करता है – बहुत बड़ी उर्जा | इसमें एक जीव उत्पन्न करने की छमता होती है | एक तरह से ‘काम उर्जा’ ही कुण्डलिनी शक्ति है, इसलिए तंत्र में इसे ‘काम कामेश्वरी’ कहा गया है | वास्तव में काम केंद्र जीवन उर्जा का कुंड है | इसलिए इस उर्जा का नाम कुण्डलिनी पड़ गया | जैसे स्वच्छ जल का छोटा सा कुंड और ऐसा जैसे कोई विषधारी सर्पिनी कुंडल मार कर सो गयी है | सोयी हुई सर्पिनी को आपने देखा होगा, कुंडल पर कुंडल मार कर और उस पर अपना फन रखकर | लेकिन जरा सा छेड़ दे आप, तुरंत कुंडल टूट जायेगा और फन उठ जायेगा | इसलिए काम उर्जा को कुण्डलिनी कहते है |
आपको एक रहस्य की बात बतला दूँ – वह यह कि मनुष्य जिसे यौन का सुख समझता है, वह वास्तव में यौन का सुख नहीं है | सम्भोग की अवस्था में मन की क्षणिक एकाग्रता के फलस्वरूप जीवन उर्जा में आये हुवे कम्पन का सुख है | कम्पन का यह जो क्षणिक सुख है उसी को मनुष्य यौन सुख और आनंद मान लेता है | आप जरा सोचिये – यह जो क्षणिक कम्पन है किसी तरह शनै: शनै: बढ़ता जाये और चरम सीमा पर पहुँच जाये तो वह सुख और आनंद भी कितना बढ़ जाये और अगर कम्पन को हम स्थाई बना दे तो जो सुख हमें सम्भोग के क्षण में मिलता है, वह भी स्थाई हो जायेगा | तो यह कम्पन प्राप्त होता है मन की सम्पूर्ण एकाग्रता से | तो जब आप समझ जाये कि मै उर्जा संरक्षण में सफल कदम रख दिया हूँ तो अब आपको कुण्डलिनी शक्ति को जगाना है | मगर कैसे ? आइये देखे….
आप वाह्य से नाता तोड़ ले – कान का, आँख का, मुंह का…| संभव हो तो शरीर का सारा वस्त्र उतार दे – महावीर की तरह | सीधा पीठ के बल लेट जाये | शरीर को ढीला छोड़ दे और पूरा श्वास भीतर ले जाये और पूरा श्वास बाहर निकाले | इस प्रकार कम से कम पंद्रह-बीस बार करे | आँखे बंद कर ले और ध्यान को काम केंद्र पर ले जाये और अनुभव करे की ‘काम केंद्र’ भीतर सक्रीय हो रहा है | जैसे पानी में आपने कभी भंवर देखी हो, ठीक ऐसा ही भीतर अनुभव करे कि आपके ‘काम केंद्र’ पर शक्ति घूम रही है | तब तक अनुभव करे जब तक आपके भीतर कम्पन न शुरू हो जाये | यह कम्पन प्राथमिक रूप से ठीक वैसा ही होगा जैसा कि सम्भोग काल में होता है | शरीर कम्पने लगेगा | जब शरीर में कम्पन होने लगे तो खूब होने दे | रोकने का प्रयास न करे बल्कि सहयोग करे | जब पूरा शरीर कम्पने लगे और काम केंद्र पर उर्जा तेजी से चक्कर काटने लगे तो तत्काल शरीर को ढीला छोड़ दे और उस समय एक ही ख्याल करे कि काम केंद्र से उर्जा ऊपर की ओर उठ रही है | आपको ऐसा लगेगा कि आग की कोई लपट धीरे धीरे ऊपर की ओर जा रही है | आपको उसकी दाह का अनुभव होगा | आप अपने चित्त को उसी दाह पर स्थिर रखे | जैसे जैसे वह दाह ऊपर की और उठे, आपका चित्त भी उसी के साथ उठे | आप उस उर्जा को मस्तिष्क के केंद्र पर ले जाये, दोनों आँखों के बीच भ्रूमध्य में | थोड़े समय के बाद आपको लगेगा कि वह उर्जा दोनों आँखों के बीच इकट्ठी हो गई है और वहां उसने चक्कर लगाना शुरू कर दिया है | इस अवस्था में आपको नशा जैसा अनुभव होगा | एक विशेष प्रकार की मस्ती छा जाएगी आप पर | अब आपको काम केंद्र को विल्कुल भूल जाना है | जब ध्यान विल्कुल हट जायेगा तो आपको भ्रूमध्य में कोई जलती हुई चीझ चक्कर काटती सी प्रतीत होगी और बाद में स्पष्ट अनुभव होगा कि चक्कर काटती हुई वह चीझ स्थिर हो गयी है | अब आप अपने चित्त को वहां एकाग्र करे जहाँ वह चीझ स्थिर हो गई है | नेत्र की दोनों पुतलियो को एक दुसरे से मिलाने का प्रयत्न करे | कुछ दिनों के अभ्यास से वे दोनों पुतलिया भ्रूमध्य की ओर बढ़ती हुई प्रतीत होगी और अंत में ऐसी स्थिति आएगी जब दोनों पुतलियाँ भ्रूमध्य केंद्र में जुड़ जाएगी और उनके जुड़ते ही मस्तिष्क के रहस्मय भाग का केंद्र जिसे तीसरा नेत्र कहा जाता है. अपने आप खुल जायेगा और आप अंतर्जगत में प्रवेश कर जायेंगे |
तो ये हुआ साधना का एक मार्ग जिसे विहंगम मार्ग कहते है |
cont…Er. D.K. Shrivastava (Astrologer Dhiraj kumar) 9431000486, 6.8.2010
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