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ऐसे साधना के तीन मुख्य मार्ग हैं – विहंगम मार्ग, पिपीलका मार्ग और कच्छप मार्ग |
विहंगम मार्ग मै बता चूका हूँ | पिपीलका मार्ग विशुद्ध तांत्रिक मार्ग है | इसके मुख्य पञ्च अंग है – श्रवण, मनन, निदिधर्यासन, ध्यान और समाधी | बिना योग्य स्त्री के सहयोग के इस मार्ग पर अग्रसर होना संभव नहीं है | तंत्र में इस मार्ग को ‘गुह्य मार्ग’ कहते है | यह अत्यंत गुह्य और गोपनीय है |
तीसरा मार्ग है कच्छप मार्ग | यह विशुद्ध योग मार्ग है | वास्तव में यह अत्यंत कठिन साधना का मार्ग है | इसके मुख्य आठ अंग है – यम, नियम, प्रत्याहार, आसन, प्राणायाम, ध्यान, धारणा और समाधि |
तो ये दोनों मार्ग कठिन है | अतः मै इस पर चर्चा करना नहीं चाहता | विहंगम मार्ग ही ऐसा मार्ग है जिस पर मेरी समझ से आसानी से चला जा सकता है | खैर; मार्ग कोई भी हो, एक बात निश्चित है-हम जितना अधिक उर्जा का संग्रह करेंगे उतना ही शीघ्र जागरण होगा |
आपको पता है उर्जा का विकिरण सबसे अधिक सर के बालों से होता है | सर पर कपडा रखने, टोपी पहनने, पगड़ी बांधने का क्या तात्पर्य है ? यही कि उर्जा विकीर्ण न होकर पुरे शरीर में अपना वर्तुल बना ले और यही कारण है कि हमें महात्माओ को साष्टांग दंडवत प्रणाम करने के लिए कहा जाता है, चरण पर मस्तक रखकर | और यही कारण है कि महापुरुष अपने हाथ से सर अथवा पीठ को स्पर्श कर आशिर्बाद देते है या अपने पैर के अंगूठे से सर को स्पर्श कर आशिर्बाद देते है | इससे हम दिव्य महापुरुषों के अंगो से प्रवाहित होने वाली उर्जा को अनजाने में ही ग्रहण कर लेते है क्योंकि शरीर के नुकीले भागो से जैसे हाथ या पैर की अंगुलियों, नासिका, जिव्हा का अग्रभाग से उर्जा सर्वाधिक मात्र में प्रवाहित होती रहती है |
तो अब तक मैंने बताया कि किस तरह साधना द्वारा कुण्डलिनी शक्ति जागृत की जा सकती है |
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