- 157 Posts
- 309 Comments
बर्लिन में सुभाषबाबू सर्वप्रथम रिबेनट्रोप जैसे जर्मनी के अन्य नेताओ से मिले। बर्लिन में नेताजी ने जर्मन सरकार की सहायता से ‘वर्किंग ग्रुप इंडिया’ की स्थापना की जो ‘विशेष भारत विभाग’ में शीघ्र ही परिणत हो गया | उन्होने जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आजाद हिंद रेडिओ की स्थापना की। इसी दौरान सुभाषबाबू, नेताजी नाम से जाने जाने लगे। जर्मनी में ही इन्होने ३७०० भारतीय युध्य्बंदियो को मिलाकर दिसम्बर १९४१ में ‘आज़ाद हिंद फौज’ की स्थापना की | जर्मन सरकार के एक मंत्री एडॅम फॉन ट्रॉट सुभाषबाबू के अच्छे दोस्त बन गए। आखिर 29 मई, 1942 के दिन, सुभाषबाबू जर्मनी के सर्वोच्च नेता एडॉल्फ हिटलर से मिले। हिटलर उनकी दिलेरी से इतना प्रभावित हुआ कि उसने सुभाष बाबु को एक वायुयान तथा एक ट्रांसमीटर भेंट में दिया | इसी ट्रांसमीटर पर वह अपने सन्देश भारत में प्रसारित करते थे | ब्रिटिश शासन अवाक् थी | लेकिन हिटलर को भारत के विषय में विशेष रूची नहीं थी। उन्होने सुभाषबाबू को सहायता का कोई स्पष्ट वचन नहीं दिया।
कई साल पहले हिटलर ने ‘मीनकाम्फ’ नामक अपना आत्मचरित्र लिखा था। इस किताब में उन्होने भारत और भारतीय पर कुछ आपत्तिजनक बातें लिखी थी | नेताजी ने निर्भीक स्वर में इसपर विरोध जताई तो हिटलर ने खेद प्रकट किया और अगले संस्करण में अपनी वर्णित भारतीय दृष्टीकोण को बदल देने का बचन दिया |
अंत में, सुभाषबाबू को पता चला कि हिटलर और जर्मनी से उन्हे कुछ और नहीं मिलनेवाला हैं। इसलिए नेताजी ८ फरवरी १९४३ को रेल द्वारा बर्लिन से कील बंदरगाह पहुंचे | 8 मार्च, 1943 के दिन, जर्मनी के कील बंदर में वे अपने साथी अबिद हसन सफरानी के साथ, एक जर्मन पनदुब्बी में बैठकर, पूर्व एशिया की तरफ निकल गए। यह जर्मन पनदुब्बी उन्हे हिंदी महासागर में मादागास्कर के किनारे तक इंडोनेशिया के पादांग बंदर तक लेकर आई….। वहाँ वे दोनो खूँखार समुद्र में से तैरकर जापानी पनदुब्बी तक पहुँच गए। द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में, किसी भी दो देशों की नौसेनाओ की पनदुब्बीयों के दौरान, नागरी लोगों की यह एकमात्र बदली हुई थी। जहाँ से पनडुब्बी द्वारा वे टोक्यो १३ मई १९४३ को पहुंचे | वहां वे जापान के प्रधानमंत्री ‘तोजो’ से १० जून १९४३ को मिले | भेंट की निर्धारित अवधी २० मिनट थी किन्तु तोजो नेताजी से इतने प्रभावित हुवे कि बातचीत ४ घंटे तक चली एवं तोजो को ये कहना पड़ा – हम उन्हें क्या कहकर पुकारे ? उन जैसा व्यक्ति ही शताब्दी पुरुष हो सकता है | जापान के प्रधानमंत्री जनरल हिदेकी तोजो ने, नेताजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर, उन्हे सहकार्य करने का आश्वासन दिया। कई दिन पश्चात, नेताजी ने जापान की संसद डायट के सामने भाषण किया।
२१ जून १९४३ को नेताजी ने टोक्यो रेडियो से रास्ट्र के नाम पहला सन्देश दिया – आज़ादी तभी मिलेगी जब अंग्रेज एवं उसके मित्र भारत से विदा हो जायेंगे | हमें अपनी लड़ाई तबतक जारी रखनी है जबतक अंग्रेजी साम्राज्वाद का नाश न हो जाये और उनकी राख से एक स्वाधीन रास्ट्र का उदय न हो जाये |
cont…Er. D.K. Shrivastava (Astrologer Dhiraj kumar) 9431000486, 9.8.2010
Read Comments