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नेताजी – जिन्दा या मुर्दा ९. एक परिचय: – पूर्व एशिया में अभियान एवं स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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पूर्व एशिया में अभियान स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार

पूर्व एशिया पहुँचकर सुभाषबाबू ने सर्वप्रथम, वयोवृद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से भारतीय स्वतंत्रता परिषद का नेतृत्व सँभाला।
नेताजी २ जुलाई १९४३ को सिंगापूर पहुंचे एवं ५ जुलाई १९४३ को ‘भारतीय मुक्ति सेना’ की विधिवत घोषणा की तथा हुंकार भरा – मेरे साथियों! मेरे सैनिको! अब आपका रणघोष होना चाहिए – दिल्ली चलो | दिल्ली चलो |
सिंगापुर के फरेर पार्क में रासबिहारी बोस ने भारतीय स्वतंत्रता परिषद का नेतृत्व सुभाषबाबू को सौंप दिया।

नेताजी ने २५ अगस्त १९४३ को फौज की कमान संभाली तथा २१ अक्टूबर १९४३ को आजाद हिंद सरकार का गठन किया | गठन समारोह १०.३० बजे सुबह में शुरू हुआ | नेताजी ने अपना शपथ पढ़ना शरू किया – ईश्वर के नाम पर मै यह पवित्र शपथ ग्रहण करता हूँ कि मै ‘सुभाष चन्द्र बोश’ भारत और अपने ३८ करोड़ देशवासियों को स्वतंत्र करने के लिए स्वाधीनता के इस पवित्र युद्धय को अपनी अंतिम साँस तक जारी रखूँगा | शपथ के इन प्रारंभिक शब्दों को पढ़ने के बाद ही उनका कंठ स्वर खो बैठा | वे अत्यंत भावुक हो उठे | उस महान देश भक्त के आँखों से अश्रुओ की अविरल धरा बह रही थी | सारा वातावरण ठहर गया, समय रुक गया, शरीरो में सिहरन दौर गयी | बड़ी कठनाई से स्वयं को नियंत्रित करते हुवे उन्होंने शपथ पात्र पढ़ना जारी रखा |

21 अक्तूबर, 1943 के दिन, नेताजी ने सिंगापुर में अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद (स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार) की स्थापना की। वे खुद इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री बने। इस सरकार को कुल नौ देशों ने मान्यता दी। नेताजी आज़ाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति भी बन गए।आज़ाद हिन्द फौज में जापानी सेना ने अंग्रेजों की फौज से पकडे हुए भारतीय युद्धबंदियोंको भर्ती किया गया। आज़ाद हिन्द फ़ौज में औरतो के लिए झाँसी की रानी रेजिमेंट भी बनायी गयी। पूर्व एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण करके वहाँ स्थायिक भारतीय लोगों से आज़ाद हिन्द फौज में भरती होने का और उसे आर्थिक मदद करने का आवाहन किया। उन्होने अपने आवाहन में संदेश दिया तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा।

नेताजी के नेतृत्व में २५ अक्टूबर १९४३ को आज़ाद हिंद सरकार ने ब्रिटेन एवं अमेरिका के विरुद्ध युध्य की घोषणा कर दी | द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आज़ाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया। अपनी फौज को प्रेरित करने के लिए नेताजी ने ‘चलो दिल्ली’ का नारा दिया।१८ मार्च १९४४ को आजाद हिंद फौज अपने मातृभूमि में प्रवेश करने में सफल हो गए | दोनो फौजो ने अंग्रेजों से अंदमान और निकोबार द्वीप जीत लिए। यह द्वीप अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद के अनुशासन में रहें। नेताजी ने इन द्वीपों का शहीद और स्वराज द्वीप ऐसा नामकरण किया। दोनो फौजो ने मिलकर इंफाल और कोहिमा पर आक्रमण किया। लेकिन बाद में अंग्रेजों का पगडा भारी पडा और दोनो फौजो को पिछे हटना पडा। जब आज़ाद हिन्द फौज पिछे हट रही थी, तब जापानी सेना ने नेताजी के भाग जाने की व्यवस्था की। परंतु नेताजी ने झाँसी की रानी रेजिमेंट की लडकियों के साथ सैकडो मिल चलते जाना पसंद किया। इस प्रकार नेताजी ने सच्चे नेतृत्व का एक आदर्श बनाकर रखा।

6 जुलाई, 1944 को आजाद हिंद रेडिओ पर अपने भाषण के माध्यम से गाँधीजी से बात करते हुए, नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपना कारण और अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद तथा आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्येश्य के बारे में बताया। इस भाषण के दौरान, नेताजी ने गाँधीजी को राष्ट्रपिता बुलाकर अपनी जंग के लिए उनका आशिर्वाद माँगा । इस प्रकार, नेताजी ने गाँधीजी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता बुलाया।

६ अगस्त को हिरोशिमा पर तथा ९ अगस्त को नागासाकी पर बम गिराने से जापान ने १५ अगस्त १९४५ को आत्मसमर्पण की घोषणा कर दिया | इस समीकरण में आगे की योजनाओ पर बिचार करने हेतु ६ सितम्बर? १९४५ को बैंकाक में नेताजी ने एक बैठक की | इस बैठक में एस. ए. अय्यर (आजाद हिंद सरकार के प्रचार मंत्री), देवनाथ दास (नेताजी के सहयोगी तथा इंडियन इंडिपेंडेट लीग के महासचिव), कर्नल प्रीतम सिंह (आजाद हिंद फौज के ख़ुफ़िया बिभाग के अधिकारी), गुलजार सिंह (नेताजी मंत्रिमंडल के सदस्य), आबिद एवान (नेताजी के निजी सचिव) तथा जनरल एस. इसोदा (जापानी जनरल ) शामिल हुवे | इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि नेताजी को भूमिगत हो जाना चाहिए |

(१९७० में इंदिरा सरकार द्वारा गठित खोसला आयोग के समक्ष जापानी जनरल एस. इसोदा का बयान – उनकी उडान का उदेश्य रूस जाना था तथा रूस जाकर रूस की सहायता से स्वतंत्रता आन्दोलन जारी रखना था | यही उनके मिशन का लक्ष्य था )

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