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नेताजी – जिन्दा या मुर्दा 10. एक परिचय: – लापता होना और मृत्यु की खबर

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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लापता होना और मृत्यु की खबर

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद, नेताजी को नया रास्ता ढूँढना जरूरी था। उन्होने रूस से सहायता माँगने का निश्चय किया था। (१९७० में इंदिरा सरकार द्वारा गठित खोसला आयोग के समक्ष जापानी जनरल एस. इसोदा का बयान – उनकी उडान का उदेश्य रूस जाना था तथा रूस जाकर रूस की सहायता से स्वतंत्रता आन्दोलन जारी रखना था | यही उनके मिशन का लक्ष्य था )

१७ अगस्त १९४५ को नेताजी अपने सभी साथियों सहित साईगोन के लिए रवाना हुवे | प्रातः ११ बजे वे साईगोन पहुंचे, जहाँ से ५ बजे सायं कर्नल हबीबुर्रहमान के साथ डेरेन (मंचूरिया) के लिए रवाना हो गए | इनके साथ जापानी दुभाषिय निगेशी भी थे | नेताजी के साथ व्यक्तिगत सामान के अतिरिक्त ३६ इंच लम्बा एक सूटकेश सोने व् बहुमूल्य बस्तुओ से भरा था जो कि आगे की कार्यवाहियों के लिए पैसे की कमी न हो इस कारण ले जा रहे थें | साईगोन से उडान भरते समय हवाई अड्डे पर जनरल इसोदा भी थे जिन्होंने बयान दिया – नेताजी का उदेश्य मंचूरिया होकर रूस जाना था |

18 अगस्त, 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मांचुरिया की तरफ जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गए। इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिये।

23 अगस्त, 1945 को जापान की दोमेई खबर संस्था ने दुनिया को खबर दी, कि 18 अगस्त के दिन, नेताजी का हवाई जहाज ताइवान की भूमि पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उस दुर्घटना में बुरी तरह से घायल होकर नेताजी ने अस्पताल में अंतिम साँस ले ली थी।

दुर्घटनाग्रस्त हवाई जहाज में नेताजी के साथ उनके सहकारी कर्नल हबिबूर रहमान थे। उन्होने नेताजी को बचाने का प्रयास किया, लेकिन वे कामयाब नहीं रहे। फिर नेताजी की अस्थियाँ जापान की राजधानी तोकियो में रेनकोजी नामक बौद्ध मंदिर में रखी गयी।

स्वतंत्रता के पश्चात, भारत सरकार ने इस घटना की जाँच करने के लिए, 1956 और 1977 में दो बार एक आयोग को नियुक्त किया। दोनो बार यह नतिजा निकला की नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही मारे गये थे। लेकिन जिस ताइवान की भूमि पर यह दुर्घटना होने की खबर थी, उस ताइवान देश की सरकार से तो, इन दोनो आयोगो ने बात ही नहीं की।1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया। 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बता दिया कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था। 2005 में मुखर्जी आयोग ने भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश की, जिस में उन्होने कहा, कि नेताजी की मृत्यु उस विमान दुर्घटना में होने का कोई सबूत नहीं हैं। लेकिन भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया।

18 अगस्त, 1945 के दिन नेताजी कहाँ लापता हो गए और उनका आगे क्या हुआ, यह भारत के इतिहास का सबसे बडा अनुत्तरित रहस्य बन गया हैं।

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