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नेताजी – जिन्दा या मुर्दा 11. एक परिचय: – क्रमवार अंतिम ज्ञात सात साल

Dharm & religion; Vigyan & Adhyatm; Astrology; Social research
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१८ अगस्त १९४५ को न तो नेताजी ताइपेई गए थे, न ही उस दिन वहा कोई विमान दुर्घटना हुई थी | नेताजी १७ अगस्त १९४५ को साइगोन (वियतनाम ) में भूमिगत हो गए थे एवं कुछ समय बाद वे रूस पहुन्च गए थे | उपर्युक्त बातो पर प्रकाश डालने के पहले आइये, उन बातो से अवगत हो जाये जो नेताजी के जीवन में दुर्घटना के 7 साल के भीतर घटे थे |

फरवरी १९३८ – कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हरिपुरा में होने का तय हुआ था। इस अधिवेशन में गाँधीजी ने कांग्रेस
अध्यक्षपद के लिए सुभाषबाबू को पसंद किया। यह कांग्रेस का ५१वा अधिवेशन था। नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष
बने |

१९३९ – कांग्रेस का वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन त्रिपुरी में हुआ। कोई समझौता न हो पाने के कारण बहुत सालो के बाद
कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए चुनाव लडा गया। महात्मा गाँधी ने पट्टाभी सितारमैय्या का साथ दिया लेकिन
सुभाषबाबू चुनाव गाँधी जी की इच्छा के बिरुद्ध भी जीत गए |

29 अप्रैल, १९३९ – सुभाषबाबू ने कांग्रेस अध्यक्षपद से गांधीजी के असहयोग के कारण इस्तीफा दे दिया।

3 मई, १९३९ – सुभाषबाबू नें कांग्रेस के अंतर्गत फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। कुछ दिन बाद,
सुभाषबाबू को कांग्रेस से निकाला गया। बाद में फॉरवर्ड ब्लॉक अपने आप एक स्वतंत्र पार्टी बन गयी। बाद में
सुभाष बाबु को अंग्रेजो द्वारा कैद कर लिया गया |

२९ दिसम्बर १९४० – जेल में नेताजी ने आमरण अनशन एवं शहीद होने की घोषणा कर दी |

५ जनवरी १९४१ – जेल से रिहा किन्तु घर में ही नजरबन्द |

१६ जनवरी १९४१ – रात के १:३० बजे वे पुलिस को चकमा देने के लिये एक पठान मोहम्मद जियाउद्दीन का भेष धरकर, अपने घर
से भाग निकले।

२६ जनवरी १९४१ – परिजनों ने नेताजी को लापता घोषित कर दिया |

३१ जनवरी १९४१ – काबुल पहुंचे |

३ अप्रैल १९४१ – जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुंचे | नेताजी ने जर्मन सरकार की सहायता से ‘वर्किंग ग्रुप इंडिया’ की स्थापना की
जो ‘विशेष भारत विभाग’ में शीघ्र ही परिणत हो गया | उन्होने जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन और
आजाद हिंद रेडिओ की स्थापना की। इसी दौरान सुभाषबाबू, नेताजी नाम से जाने जाने
लगे।

दिसम्बर १९४१ – जर्मनी में ही इन्होने ३७०० भारतीय युध्य्बंदियो को मिलाकर ‘आज़ाद हिंद फौज’ की स्थापना की
|

२२/२९ मई १९४२ – नेताजी हिटलर से मिले | हिटलर ने अपने किताब ‘मैन्कैम्फ़’ में भारत पर कुछ आपत्तिजनक बातें लिखी थी |
नेताजी ने निर्भीक स्वर में इसपर विरोध जताई तो हिटलर ने खेद प्रकट किया और अगले संस्करण
में अपनी वर्णित भारतीय दृष्टीकोण को बदल देने का बचन दिया |

९ अगस्त १९४२ – ‘बम्बई कांग्रेस अधिवेशन’ में. गाँधी जी द्वारा ‘भारत छोडो आन्दोलन’ शुरू हूवा | इस आन्दोलन का नेहरु जी ने
पूरजोर समर्थन किया | ध्यान देने वाली बात है कि ये वही नेहरु जी थे, जिन्होंने. १९४० में कहा था – ऐसे समय
में, जबकि ब्रिटेन जीवन एवं मरण के संघर्ष में घिरा है, विश्व-युध्य छिड़ा है, आन्दोलन छेड़ना भारत के लिए
अप्रतिष्ठाजनक होगा | उल्लेखनीय है कि, इस समय नेताजी नागरिक अवज्ञा आन्दोलन एवं भारत छोडो
आन्दोलन चलाना चाहते थें, कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे, किन्तु नेहरु जी व् पिठ्ठू नेताओ के बिरोध के कारण वे नहीं
चलाये तथा कांग्रेस से अलग हो गए एवं ‘फॉरवर्ड ब्लाक ‘ की स्थापना की | नेहरु जी शायद भूल गए थे कि सन
१९४० का वर्ष ब्रिटेन के लिए जीवन एवं मरण का समय था जबकि १९४२ का वर्ष ब्रिटेन के लिए सिर्फ मरण का
समय बन गया था क्योंकि युद्धय अपनी पूरी जवानी पर था तथा जापान एवं जर्मनी अपनी यौवनावस्था के
चरमोत्कर्ष पर थे |

८ फरवरी १९४३ – नेताजी रेल द्वारा बर्लिन से कील बंदरगाह पहुंचे |

१३ मई १९४३ – कील बंदरगाह से से पनडुब्बी द्वारा टोक्यो पहुंचे |

१० जून १९४३ – जापान के प्रधानमंत्री ‘तोजो’ से मिले | भेंट की निर्धारित अवधी २० मिनट थी किन्तु तोजो नेताजी से इतने
प्रभावित हुवे कि बातचीत ४ घंटे तक चली एवं तोजो को ये कहना पड़ा – हम उन्हें क्या कहकर पुकारे ? उन
जैसा व्यक्ति ही शताब्दी पुरुष हो सकता है |

२१ जून १९४३ – नेताजी ने टोक्यो रेडियो से रास्ट्र के नाम पहला सन्देश दिया – आज़ादी तभी मिलेगी जब अंग्रेज एवं उसके मित्र
भारत से विदा हो जायेंगे | हमें अपनी लड़ाई तबतक जारी रखनी है जबतक अंग्रेजी साम्राज्वाद का नाश न हो
जाये और उनकी राख से एक स्वाधीन रास्ट्र का उदय न हो जाये |

२ जुलाई १९४३ – सिंगापूर पहुंचे |

५ जुलाई १९४३ – ‘भारतीय मुक्ति सेना’ की विधिवत घोषणा की तथा हुंकार भरा – मेरे साथियों! मेरे सैनिको! अब आपका रणघोष
होना चाहिए – दिल्ली चलो | दिल्ली चलो |

२५ अगस्त १९४३ – फौज की कमान संभाली |

२१ अक्टूबर १९४३ – नेताजी ने सिंगापुर में अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद (स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार – आजाद हिंद
सरकार ) की स्थापना की। वे खुद इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री बने। नेताजी ने अपना
शपथ पढ़ना शरू किया – ईश्वर के नाम पर मै यह पवित्र शपथ ग्रहण करता हूँ कि मै ‘सुभाष चन्द्र बोश’ भारत
और अपने ३८ करोड़ देशवासियों को स्वतंत्र करने के लिए स्वाधीनता के इस पवित्र युद्धय को अपनी अंतिम
साँस तक जारी रखूँगा | शपथ के इन प्रारंभिक शब्दों को पढ़ने के बाद ही उनका कंठ स्वर खो बैठा | वे अत्यंत
भावुक हो उठे | उस महान देश भक्त के आँखों से अश्रुओ की अविरल धरा बह रही थी | सारा वातावरण ठहर
गया, समय रुक गया, शरीरो में सिहरन दौर गयी | बड़ी कठनाई से स्वयं को नियंत्रित करते हुवे उन्होंने शपथ
पात्र पढ़ना जारी रखा | इस सरकार को कुल नौ देशों ने मान्यता दी।

२५ अक्टूबर १९४३ – नेताजी के नेतृत्व में आज़ाद हिंद सरकार ने ब्रिटेन एवं अमेरिका के विरुद्ध युध्य की घोषणा कर दी |

१८ मार्च १९४४ – आजाद हिंद फौज अपने मातृभूमि में प्रवेश करने में सफल हो गए | बाद में नेताजी के फौजों ने अंग्रेजों से
अंदमान और निकोबार द्वीप जीत लिए। यह द्वीप अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद के अनुशासन में रहें। नेताजी ने
इन द्वीपों का शहीद और स्वराज द्वीप ऐसा नामकरण किया।

6 जुलाई, १९४४ – नेताजी ने आजाद हिंद रेडिओ पर अपने भाषण के माध्यम से गाँधीजी से बात करते हुए जापान से सहायता
लेने का अपना कारण और अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद तथा आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्येश्य के बारे
में बताया। इस भाषण के दौरान, नेताजी ने गाँधीजी को राष्ट्रपिता बुलाकर अपनी जंग के लिए उनका आशिर्वाद
माँगा । इस प्रकार, नेताजी ने गाँधीजी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता बुलाया।

६ अगस्त १९४४ – हिरोशिमा पर बम गिराया गया | इस समीकरण में आगे की योजनाओ पर बिचार करने हेतु ६ अगस्त ? १९४५
को बैंकाक में नेताजी ने एक बैठक की | इस बैठक में एस. ए. अय्यर (आजाद हिंद सरकार के प्रचार मंत्री),
देवनाथ दास (नेताजी के सहयोगी तथा इंडियन इंडिपेंडेट लीग के महासचिव), कर्नल प्रीतम सिंह (आजाद हिंद
फौज के ख़ुफ़िया बिभाग के अधिकारी), गुलजार सिंह (नेताजी मंत्रिमंडल के सदस्य), आबिद एवान (नेताजी के
निजी सचिव) तथा जनरल एस. इसोदा (जापानी जनरल ) शामिल हुवे | इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि
नेताजी को भूमिगत हो जाना चाहिए |

९ अगस्त १९४४ – नागासाकी पर बम गिराया गया |

१५ अगस्त १९४५ – जापान ने आत्मसमर्पण की घोषणा कर दिया |

१७ अगस्त १९४५ – नेताजी अपने सभी साथियों सहित साईगोन के लिए रवाना हुवे | प्रातः ११ बजे वे साईगोन पहुंचे, जहाँ से ५
बजे सायं कर्नल हबीबुर्रहमान के साथ डेरेन (मंचूरिया) के लिए रवाना हो गए | इनके साथ जापानी दुभाषिय
निगेशी भी थे | साईगोन से उडान भरते समय हवाई अड्डे पर जनरल इसोदा भी थे जिन्होंने बयान दिया –
नेताजी का उदेश्य मंचूरिया होकर रूस जाना था | (१९७० में इंदिरा सरकार द्वारा गठित खोसला आयोग के
समक्ष जापानी जनरल एस. इसोदा का बयान – उनकी उडान का उदेश्य रूस जाना था तथा रूस जाकर रूस की
सहायता से स्वतंत्रता आन्दोलन जारी रखना था | यही उनके मिशन का लक्ष्य था ) |

18 अगस्त, १९४५ – नेताजी हवाई जहाज से मांचुरिया की तरफ जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गए। इस दिन के
बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिये।

23 अगस्त, १९४५ – जापान की दोमेई खबर संस्था ने दुनिया को खबर दी, कि 18 अगस्त के दिन, नेताजी का हवाई जहाज
ताइवान की भूमि पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उस दुर्घटना में बुरी तरह से घायल होकर नेताजी ने
अस्पताल में अंतिम साँस ले ली थी।

cont…Er. D.K. Shrivastava (Astrologer Dhiraj kumar) 9431000486, 12.8.2010

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