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भारत की स्वतंत्रता के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री क्लीमेंट एटली तीन सप्ताह की सदभावना यात्रा पर भारत यात्रा करने सपत्निक १२ अक्टूबर १९५६ को शांताक्रुज हवाई अड्डे पर उतरे | इस भ्रमण के दौरान वे लखनऊ भी पधारे | तब उ.प. के मुख्यमंत्री डॉक्टर संपूर्णानंद थे | वार्ता के दौरान उन्होंने पूछ ही लिया नेताजी के बारे में | एटली का छोटा सा उत्तर – रूस में है, सुनते ही वे अधिक जानकारी हासिल करने के लिए व्याकुल हो उठे | एटली ने उन्हें निराश नहीं किया और बताया कि विश्वयुद्ध के अंतिम दौर में मै ब्रिटेन का प्रधानमंत्री था | बोस मित्र रास्त्रो के युद्ध अपराधी थे | जापानी नहीं चाहता था कि भारत के इस महान कर्मयोगी और क्रांति के पुजारी को एक कैदी के रूप में हमारे हवाले किया जाये | अतः सोवियत संघ के मार्शल जोसेफ स्टालिन को उन्हें रूस में दाखिल होने के लिए किसी प्रकार राजी कर लिया | (श्री धमेंद्र गौड़, अमर उजाला, दिनांक ४ अप्रैल १९८२) (श्री गौड़ १९५६ में गृह मंत्रालय के इंटेलिजेंसी ब्यूरो में असिस्टेंट स्पेशल इंटेलिजेंस अफसर थे तथा फारेनर एंड सिक्योरिटी ब्रांच लखनऊ में कार्यरत थे तथा एटली के सुरक्षा की जिम्मेदारी इन्हें ही सौपी गयी थी | )
पंडित नेहरु को भी पता था कि नेताजी सोवियत संघ पहुँच गए है | इस बात की पुष्टि ३१ दिसंबर १९७१ को खोसला आयोग के समक्ष श्री श्याम लाल जैन के दिए गए एक बयान से स्पष्ट होता है जो १९४५ में आजाद हिंद फौज के बचाव समिति के संयोयक श्री आसफ अली के स्टेनो थे | श्री जैन ने बताया कि २७ दिसम्बर १९४५ को पंडित नेहरु श्री आसफ अली के दरियागंज (नई दिल्ली) स्थित आवास पर आये तथा अपने अचकन से एक गोपनीय पत्र निकाला और मुझे उसकी चार प्रतिया टाईप करने को कहा | उस पत्र में प्रेषक का नाम अस्पष्ट था तथा इस प्रकार की सूचना थी – नेताजी सुभाष चन्द्र बोस साईंगोन से विमान द्वारा रवाना हुवे | वे देरेवे (मंचूरिया) में अपराहन १:३० बजे आये | वहां उन्होंने चाय पी और केले खाए | वहां पास ही में एक मोटर जीप खड़ी थी | जिस विमान से नेताजी आये थे वह एक जापानी बमवर्षक विमान था | नेताजी के हाथ में अटैचीकेस था | जब नेताजी ने चाय पी ली तो वे जीप में बैठ गए | उसी जीप में चार अन्य ब्यक्ति भी बैठे जिसमे एक जनरल शिदैई भी थे | उसके बाद जीप रुसी सीमा में चली गयी और दो या तीन घंटे बाद हवाई अड्डे पर लौट आयी | जीप में जो व्यक्ति नेताजी को ले गया था उसने पायलट को सूचित किया कि उसने नेताजी को रुसी क्षेत्र में पहुंचा दिया है | इसके बाद विमान टोक्यो के लिए उड़ गया | (खोसला आयोग की बैठके, भाग ४, पृष्ठ १३०४) |
उसी समय देश के एक बड़े नेता ने मुझसे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री क्लीमेंट एटली के लिए एक गोपनीय पत्र टाईप करवाया, जो इस प्रकार था –
प्रिय श्री एटली
मुझे विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि आपके युद्ध अपराधी सुभाष चन्द्र बोस को स्टालिन ने रूस मे प्रवेश करने की अनुमति दे दी है | यह रूसियो द्वारा विश्वासघात है | रूस इंग्लॅण्ड एवं अमेरिका का मित्र रहा है | उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था | कृपया इसे नोट कर ले और जो करवाई उचित समझे, करे |
आपका
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पंडित नेहरु को यह बात अच्छी तरह से मालूम थी कि नेताजी रूस में है | यहाँ तक कि नेताजी ने नेहरु को पत्र भी लिखा था कि वे रूस में है और भारत आना चाहते है | (सुरेश चन्द्र बोस, डिसेंशिएंट रिपोर्ट, कलकत्ता १९६१, पृष्ठ १६५)
नेहरु द्वारा गठित शाहनवाज समिति ने ४ मई १९५६ को टोक्यो में संवाददाताओ के समक्ष यह स्वीकार किया था कि उनका उदेश्य नेताजी के मृत्यु के बारे में प्रमाण एकत्रित करना है | (सुरेश चन्द्र बोस, डिसेंशिएंट रिपोर्ट, पृष्ट ९९)
मै पूछता हूँ कि
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जो समिति नेताजी के मृत्यु का प्रमाण पत्र एकत्रित करना चाहती हो, वह नेताजी के जीवन की जाँच क्या कर पायेगी ?
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खाक करेगी, विल्कुल नहीं कर पायेगी | शाहनवाज समिति की रिपोर्टे विल्कुल भ्रामक एवं लोलुप्तापूर्ण थी जो तत्कालीन सरकार को ध्यान में रखकर तैयार की गयी थी | इसी समिती के एक तीसरे सदस्य ने एक अलग रिपोर्ट तैयार की थी और निष्कर्ष दिया था कि सब गवाहियों, दस्तावेजो, चित्रों आदि को ध्यानपूर्वक अध्ययन करने के बाद मै इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि नेताजी की मृत्यु नहीं हुई | (सुरेश चन्द्र बोस, डिसेंशिएंट रिपोर्ट, पृष्ठ ११७)
cont…Er. D.K. Shrivastava (Astrologer Dhiraj kumar) 9431000486, 13.10.2010
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