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आइये, अब नेताजी के मृत्यु से सम्बंधित बयानों में विरोधाभाष को देखे –
ले. कर्नल नोनोगाकी ने शाहनवाज समिति को बताया था कि दुर्घटना के बाद उन्होंने कर्नल रहमान को नेताजी का स्वेटर उतारते देखा था जबकि कर्नल रहमान के अनुसार वे स्वेटर पहने हुए नहीं थे | (सुरेश चन्द्र बोस, डिसेंशिएंट रिपोर्ट, पृष्ठ १२२) |
खोसला आयोग के समक्ष डॉक्टर योशिमी की गवाही के अनुसार – अस्पताल में लाये जाते वक्त नेताजी विल्कुल नंगे थे (खोसला आयोग की बैठके, भाग ६, पृष्ठ २४५५-५८) जबकि अर्दली एम्. कोजुओ (जो नेताजी को स्ट्रेचर पर डालकर अस्पताल में अन्दर लाये थे ) का बयान शाहनवाज समिति के सामने था कि – मिस्टर बोस स्ट्रेचर पर लेटे हुवे थे तथा वायु सेना अधिकारी की वर्दी पहने थे | (सुरेश चन्द्र बोस, डिसेंशिएंट रिपोर्ट, पृष्ठ १३१)
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आखिर गवाहों की गवाही में इतना विरोधाभाष क्यों?
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अगर घटना सच होती तो सबकी नजरे वही देखती है जो घटित होता है | अगर घटना घटित ही न हो तो कल्पनाये भिन्न होगी ही | चाहे लाख झूठ को सच बनाया जाये लेकिन गलती हो ही जाती है क्योकि बनाना पड़ता है | बनाये जाने वाले घटनाओ में कोई न कोई खामी, कोई न कोई दोष रह ही जाता है |
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