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अब मै नेताजी के सन्दर्भ में सारी बाते अत्यंत संक्षेप में स्पष्ट करता हूँ –
नेताजी ने आजाद हिंद फौज का गठन कर अमेरिका एवं इंग्लैंड के बिरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी, किन्तु १९४५ में जापान-जर्मनी के घुटने टेकने के उपरांत इनके सामने दो प्रश्न उठा – पहला या तो खुद भी घुटने टेक दे (जो कि नेताजी सरीखे व्यक्ति के लिए विल्कुल असंभव था), दूसरा – लड़ाई को जारी रखे | लड़ाई को जारी रखने के लिए पुनः सेना को संगठित करना पड़ता | इसके लिए मीटिंग हुई और तय हुआ कि नेताजी रूस चले जाये और वहां पुनः सेना का संगठन करे | नेताजी चल पड़े | चूँकि जापान-जर्मनी की हार हो गयी थी और अमेरिका-इंग्लैंड विजयी हुवे थे अतः इस हालत में नेताजी कही भी रहते, अमेरिका-इंग्लैंड युद्ध अपराधी के रूप में उन्हें बंदी बना लेते, जो की जापान नहीं चाहता था | जापान नहीं चाहता था कि भारत का यह कर्मवीर शेर जेल में रहे या किसी प्रकार का दंड भुगते | अतः यह निर्णय लिया गया कि नेताजी को मृत घोषित कर दिया जाये और गुप्त रूप से उन्हें रूस पहुंचा दिया जाये | इस बात के लिए स्टालिन को राजी कर लिया गया | विश्वयुद्ध में ब्रितानी-अमेरिका के साथ होते हुवे भी स्टालिन राजी हो गया क्योकि रूस शुरू से ही भारत का सच्चा मित्र रहा है | नेताजी रूस पहुँच गए | जब नेताजी सुरक्षित रूस पहुँच गए तब घोषणा की गयी जापान रेडिओ द्वारा की नेताजी विमान दुर्घटना में मर गए |
ईधर भारत की स्थिति में १९४५ के उपरांत तेजी से परिवर्तन हुआ | भारत की स्वतंत्रता स्पष्ट हो गयी | तब नेताजी ने नेहरु को पत्र लिखा कि वे रूस में है और भारत आना चाहते है (सुरेश चन्द्र बोस, डिसेंशिएंट रिपोर्ट, कलकत्ता १९६१, पृष्ठ १६५) | पंडित नेहरु ये अच्छी तरह से जानते थे कि भारतीय जनता में नेताजी उनसे कही अधिक ज्यादा लोकप्रिय है और यदि वे वापस आये तो सारे देश में इस महान देशभक्त का अभूतपूर्व स्वागत होगा | अतः कोई कसर न छोड़ी तथा इस बात का खूब हो हल्ला मचाया गया कि नेताजी निश्चित रूप से मर गए है | राजनितिक हत्या कर दी गयी नेताजी की | नेताजी सरीखे व्यक्ति को सिर्फ सत्ता हेतु यह लोलुपता अच्छी नही लगी और न ही सिर्फ सत्ता पाने हेतु देश का बंटवारा | गाँधी जी का ये बात – मेरी लाश पर ही देश का बंटवारा होगा – पूर्णतः ठीक लगा | किन्तु सत्ता लोभियों को ये समझ न आ सकी | नेताजी ने एकांतवास, गुप्तवास ले लिया | १९६० में नेताजी एक स्वामी शारदानंद के छद्म नाम से पश्चिम बंगाल के जिला कूच बिहार में एक आश्रम बना कर रहने लगे | वहां वे अपने अत्यंत विश्वसनीय व्यक्ति के सामने ही प्रकट होते थे | उनके विश्वस्त साथियो ने उनसे पूछा कि वे प्रकट क्यों नहीं होते है सबके सामने तो उन्होंने जबाब दिया – जब सारे देशवासियो का इन लोभी नेताओ पर से विश्वास उठ जायेगा, वही मेरे प्रकटीकरण का समय होगा | कुछ समय बाद नेताजी पुनः गायब हो गए | उसके बाद (१९६५ के बाद) उनका कुछ पता न चल सका |
नेताजी के लापता हो जाने की परिस्थितियों की मुखर्जी आयोग द्वारा छ: वर्षों तक की गई विस्तृत और गहन जाँच से यह तथ्य साफ उजागर हो गया है कि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान द्वारा घुटने टेक दिए जाने और उस पर अमेरिका और ब्रिटेन का नियंत्रण स्थापित हो जाने की आसन्न परिस्थितियों के मद्देनज़र नेताजी ने गोपनीय तरीके से सोवियत संघ चले जाने और वहाँ से भारत की आजादी का संग्राम जारी रखने की योजना बना ली थी। इस योजना को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए उनके द्वारा बनाई गई रणनीति के अनुरूप जापानी सेना में उनके विश्वस्त उच्च अधिकारियों ने सुनियोजित तरीके से तइपेई में 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो जाने की अफवाह फैला दी। इस अफवाह पर ना तो ब्रिटिश सरकार ने कभी भरोसा किया, न अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने और ना ही महात्मा गांधी सहित कांग्रेस के तत्कालीन शीर्ष नेताओं ने। लेकिन नेताजी के संबंध में सबसे पुख्ता जानकारी यदि किसी के पास हो सकती थी तो वह थी तत्कालीन सोवियत संघ की सरकार, क्योंकि उपलब्ध तथ्य यही संकेत करते हैं कि नेताजी 18 अगस्त, 1945 के बाद सोवियत संघ ही गए थे।
इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए दिल्ली स्थित ‘मिशन नेताजी’ नामक एक संगठन के प्रतिनिधि अनुज धर ने 2 अगस्त, 2006 को सूचना के अधिकार का प्रयोग करते हुए भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में लोक सूचना अधिकारी के समक्ष आवेदन दायर करके नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के लापता हो जाने के संबंध में विदेश मंत्रालय और तत्कालीन सोवियत संघ एवं वर्तमान रूस के बीच अब तक हुए पत्राचार की सत्यापित प्रतिलिपियाँ उपलब्ध कराए जाने की मांग की। इसके उत्तर में लोक सूचना अधिकारी ने 25 अगस्त, 2006 को उत्तर दिया कि उक्त पत्राचार की प्रतिलिपियाँ उपलब्ध नहीं कराई जा सकतीं क्योंकि इसमें विदेशी राष्ट्र के साथ संबंध अंतर्ग्रस्त है और सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(1) (क) से (च) के उपबंधों के अनुसार यह दी जा सकने वाली ‘सूचना’ के दायरे से बाहर है।
नेताजी का जन्म २३ जनवरी १८९७ को हुआ था | पता नहीं, आज नेताजी है भी या नहीं | दुष्टों ने इन्हें पूरी तरह मारने का खूब प्रपंच लगाया | शायद वे नहीं जानते थे कि वे सारे के सारे मर जायेंगे किन्तु नेताजी कभी नहीं मरेंगे | ये सारे दुष्टों को मरने के बाद भी अनंत काल तक हमारे हृदयों में रहेंगे | उन दुष्टों ने देश पर राज किया, नेताजी अनंतकाल तक हमारे दिलो में राज करेंगे | नेताजी आज कही भी हो, चाहे इस लोक में या उस लोक में; मेरे लिए वे हमेशा मेरे आँखों के सामने रहेंगे, हमेशा जीवित रहेंगे | मृत्यु उन जैसे व्यक्तिओ को छू भी नही सकती | , अमर हैं ये, नेताजी अमर हैं |
Netaji, never dead .
Dhiraj kumar 25.10.93
cont…Er. D.K. Shrivastava (Astrologer Dhiraj kumar) 9431000486, 21.10.2010
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